आज के इस ब्लॉग Short Moral Stories With Moral For Kids In Hindi 2023 में हमने बच्चो से लेकर बड़ो के लिए Moral Stories लिखी है. जिनको पड़ने से मनोरंजन के साथ साथ ही आपको अच्छी शीछा भी मिलेगी. ये तो आप सभी को पता ही है बच्चो को Stories पड़ना या सुनना कितना पसंद है तो उन्ही के लिए हमने आज का ये ब्लॉग लिखा है ताकि वे मनोरजनं के साथ साथ कुछ अच्छी बाते भी सीखे.
और इस ब्लॉग में लिखी सभी Short Moral Stories in Hindi अच्छी सिक्छा के साथ साथ व्यक्ति को अच्छा इन्सान बनने की भी प्रेरणा देती है.
अगर आप अपने बच्चो के लिए अच्छी कहानी की तलाश करते हुए आए है तो ये आपके लिए बहुत सही जगह है. इस आर्टिकल में आपको सिर्फ moral stories ही मिलेगी। stories पड़ने के लिए निचे scroll करे.
Table Of Contents
- 1 Short moral stories in Hindi 2023
- 2 अहंकार – Short moral stories in Hindi
- 3 मेहनत का फल – Short moral stories With Moral
- 4 चींटी और कबूतर – moral stories in Hindi
- 5 कौवा और चालाक लोमड़ी – Short Stories For Children
- 6 अहसान फरामोश चूहे की कहानी – Short moral Stories For Kids
- 7 आलसी गधा – Short Moral Stories in hindi For Class 1
- 8 समझदार भेड़िया – Good Short Moral Stories In Hindi
- 9 सांप और चूहा – Hindi moral stories
- 10 टोपियों का व्यापारी – Short Stories in hindi For Class 2
- 11 हाथी और तोता – stories with moral in hindi
- 12 तेनाली राम – Short Moral Stories For Student In Hindi
- 13 गधे की सवारी – Moral Stories in hindi For Class 3
- 14 हाथी की मित्रता – 2023 Short Moral Stories in Hindi
- 15 जादुई चक्की – Akbar Birbal Short Moral Stories In Hindi
- 16 बुद्धिमान बंदर और मगरमच्छ – Inspiration Short Moral Storie In Hindi
- 17 जादुई गोली और सोना – Short Moral Stories For Class 4 in hindi
- 18 करोड़ीमल – Short Moral Stories For Class 5
- 19 घमंड की भूख – Moral Stories In Hindi Short
- 20 दो पहलवान – Moral Stories In Hindi For Adult
- 21 उड़ने वाला हाथी – Motivation Short Moral Stories In Hindi
- 22 हाथी और चींटी – Short Moral Stories For Class 5 in hindi
- 23 ईमानदारी का इनाम – Short Stories For Kids 2023
- 24 आज हमने क्या सीखा?
Short moral stories in Hindi 2023
अहंकार – Short moral stories in Hindi
बहुत समय पहले की बात है, एक गाऊ में, एक मूर्तिकार रह करता था. वो ऐसी मुर्तिया बनता था, जिन्हें देख कर हर किसी को मूर्तियों के जीवित होने का भ्रम हो जाता था। आस पास के सभी गाउ में उसकी बहुत प्रसिद्धि थी।
लोग उसकी मूर्ति कला के कायल थे, इसलिए उस मूर्तिकार को अपनी उस कला पर बड़ा घमंड था, जीवन के सफर में एक पल ऐसा भी आया जब उसे लगने लगा उसकी मृतयु होने वाली है ! वो ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएगा, उसे जब लगा जल्दी ही उसकी मृत्यु होने वाली है तो वो परेशानी में पड़ गया !
यमदुतो को भ्रमित करने के लिए उसने एक योजना बनाई. उसने हूबहू अपने जैसी 10 मुर्तिया बनाई और खुद उन मूर्तियों के बिच जाकर बैठ गया। यमदूत जब उसे लेने आए तो एक जैसी 11 आकृतियों को देख कर दंग रह गए.
वो पहचान नहीं पा रहे थे की इन मूर्तियों में से असली मनुस्य हे कोन. वो सोचने लगे अब क्या किया जाए, अगर वो उस मूर्तिकार के प्राण नहीं ले सके तो सृस्टि का नियम टूट जाएगा और सत्य परखने के लिए मूर्तियों को तोड़ा गया तो मूर्तियों का अपमान हो जाएगा.
अचानक एक यमदूत को मानव स्वाभाव के सबसे बड़े दुर्गुण, अहंकार को परखने का विचार आया।उसने मूर्तियों को देखते हुए कहा, कितनी सुन्दर मुर्तिया बनी है न लेकिन मूर्तियों में एक गलती है. कास मूर्ति बनाने वाला मेरे सामने होता तो में उसे बताता मूर्ति बनाने में क्या गलती हुई है. ये सुनकर मूर्तिकार का अहंकार जाग उठा उसने सोचा, मेने अपना सारा जीवन मूर्ति बनाने में समर्पित कर दिया भला मेरी मूर्तियों में गलती कैसे हो सकती है. तभी वो बोल उठा कैसी गलती, झट से यमदूत ने उसे पकड़ लिया और कहा बस यु ही गलती कर गए तुम अपने अहंकार में की बेजान मुर्तिया बोला नहीं करती.
शिक्षा –
“इतिहास गवाह है, अहंकार ने हमेशा इन्सान को परेशानी और दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया”
मेहनत का फल – Short moral stories With Moral
दो दोस्त, थे संजय और मनोज, दोनों ही बेरोजगार थे. उन्होने अपने एक परिचित गुरुजी को अपनी परेशानी बताई और कहा। गुरु जी, हमें कुछ रूपये दीजिए. जिससे हम कुछ काम – धंधा शुरू कर सकें. गुरूजी ने दोनों दोस्तों को एक एक हजार रूपये दिए। साथ ही ये कहा, एक साल के अंदर तुम्हे इन रुपयों को लौटना होगा।
दोनों ने गुरु जी की बात मान ली। फिर वे गुरु जी से रूपये लेकर चल पड़े.रास्ते में संजय ने कहा, हमें इन रुपयों से कोई अच्छा काम शुरू करना चाहिए। पर मनोज ने कहा, नहीं, अब हम कुछ दिन अच्छे स्थानों पर घूमने जाएँगे, मौज करेंगे.
“एक साल बाद”, एक साल बीत जाने के बाद दोनों दोस्त गुरु जी के पास पहुंचे. गुरु जी ने पहले मनोज से पूछा, तुमने रुपयों का क्या किया ? क्या लौटाने के लिए रूपये लाए हो ? मनोज ने मुँह लटकाकर जवाब दिया, गुरु जी, किसी ने धोखा देकर वे रूपये ठग लिए।
फिर उन्होंने संजय से पूछा, तुम भी खाली हाथ आए हो क्या ? संजय ने मुस्कुराकर जवाब दिया, नहीं गुरु जी, ये लीजिये आपके एक हजार रूपये और अतिरिक्त एक हजार रूपये।
गुरु जी ने पूछा संजय तुम इतने रूपये कैसे कमा लाए? क्या तुमने किसी को धोखा दिया है? संजय बोला – जी नहीं. मेने तो अपनी सूझ – बूझ और मेहनत से ये रूपये कमाए है. एक किसान को परेशान देख कर मैने उसके सारे फल खरीद लिए. फिर उन्हें शहर में जाकर बेच दिया. इसके बाद वह प्रीतिदिन मुझे फल ला देता और में उन्हें बेच देता.
कुछ दिनों के बाद मैंने शहर में दुकान लेली और फल का कारोबार शुरू किया. इतना कहकर उसने गुरु जी को मदत करने के लिए धन्यवाद दिया और अतिरिक्त एक हजार रूपये किसी जरूरतमंद को देने के लिए आग्रह किया.
गुरु जी संजय से बहुत खुश हुए. उन्होंने मनोज से कहा, अगर तुम भी समझदारी तथा मेहनत से काम करते तो सफल हो सकते थे। संजय ने कहा, अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हे.
शिक्षा –
समय का सम्मान करो और श्रम का महत्त्व समझो। सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।
चींटी और कबूतर – moral stories in Hindi
एक समय की बात है। एक पेड़ पर से एक चींटी तालाब में गिर गई। एक कबूतर ने उसे अपनी जीवन बचाने के लिए, जी तोड़ कोशिश करते हुए देखा। उसने चींटी की मदत करने के लिए एक पत्ते को तोड़ा और चींटी के पास फेक दिया। चींटी झट से पत्ते पर चढ़ गई और बड़ी कृतज्ञता भरी नजरो से उसने कबूतर को धन्यवाद किया।
कुछ सप्ताहों बाद की बात है। एक बहेलिया जंगल में आया। बहेलियों का तो काम ही होता है पछियो को पकड़ना। उसने कुछ दाने जमीन पर फेके और उस पर अपना जाल बिछा दिया। वहा चुपचाप किसी पछी के जाल में फसने का इन्तजार कर रहा था।
वही चींटी जिसकी मदत कबूतर ने की थी वही से गुजर रही थी। उसने वह सारी तैयारी देखि ली और वह क्या देखती है। कि वही कबूतर जिसने उसकी जान बचाई थी। उड़ कर उसी जाल में फसने के लीये धीरे धीरे नीचे उतर रहा था।
चींटी ने एक दम आगे बड़ बहेलिये के पैर पर इतनी बुरी तरह काट दिया की बहेलिये के मुँह से चीख निकल गई। ओह ——- तेरी ऐसी की तैसी। हाय —– ओह परमात्मा। कबूतर ने एक दम देखा की शोर किधर से आ रहा है। और बहेलिये को देखते ही सब कुछ उसकी समझ में आ गया। वह दूसरी दिशा में उड़ गया। और उसकी जान बच गई। और चींटी भी अपने काम पर चल दी।
शिक्षा –
“कर भला सो हो भला”
कौवा और चालाक लोमड़ी – Short Stories For Children
बहुत समय पुरानी बात है। एक कौवा भोजन की तलाश में इधर उधर भटक रहा था। परन्तु उसके हाथ कुछ न लगा। वह थका हारा एक पेड़ पर जा बैठा। अरे वाह किस्मत हो तो ऐसी, उसे पेड़ के निचे एक प्लेट में पनीर का एक टुकड़ा दिखाई दिया। वो प्लेट के पास पंहुचा, उसने अपनी चोंच से उसे उठा लिया और उड़ने लगा।
बहुत से कौवे उसके पीछे पीछे उड़ने लगे, वो भी पनीर को उससे छीनना चाहते थे। वो सबको चकमा देने में कामयाब हो गया। और एक पेड़ की शाखा पर जा कर बैठ गया। उधर ही कही एक लोमड़ी वहां कही गुजर रही थी। लोमड़ी ने कौवे की चोंच में फसा पनीर देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया।
उसने जल्द ही कौवे से उसका पनीर अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई। और उसने कौवे की और देखा और बोली। अरे कौवे भाई, तुम कितने खूबसूरत हो। में अपना परिचय तुम्हे दे दू। में एक भोली भाली लोमड़ी हु। मेरी सहेलियों ने मुझे बताया है। की तुम्हारी आवाज़ में एक गजब की मिठास है। क्या यह बात सही है?
कौवा यह सुनकर हैरान रह गया। आज तक तो, किसी ने उसकी आवाज़ की तारीफ नहीं की थी। परंतु वह चुप रहा। कौवे भाई, अपनी मधुर आवाज़ में क्या तुम मेरे लिए एक गाना नहीं गा सकते। सुनाओ न भाइया। परंतु अभी भी वह मोन था। लोमड़ी फिर बोली। क्या तुम अपनी प्यारी बहन की इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? तुम कितने सुंदर हो। तुम्हारे पंखो का तो कहना ही क्या। मेरे लिए एक गाना गाओ न कौवे भईया।
कौवा उसके झांसे में आ गया। उसने अपनी चोंच खोली और लगा, काव काव करने। और पनीर उसकी चोंच से निकला और जमीन पर आ गिरा। लोमड़ी ने झट से उसे झपट लिया और खा गई। लेकिन जब तक कौवे को समझ में आता, की क्या हुआ। लोमड़ी वह से चल दी। कोवा उदास हो गया। अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत।
शिक्षा –
चापलूसों से बचो, इनका विशवास नहीं करना चाहिये।
अहसान फरामोश चूहे की कहानी – Short moral Stories For Kids
एक बहुत घने जंगल में एक महात्मा अपनी कुटिया में रहा करते थे । वह हमेशा तपस्या करते रहते थे । एक दिन जब वह अपने ध्यान में खोए हुए थे । तो उनकी गोद में एक चूहा आ गिरा जो एक उड़ते हुए कोए की चोंच से छूट गया था । महात्मा ने उसे प्यार से उठाया और अपने बच्चे की तरह उसका पालन पोषण करने लगे । परन्तु एक दिन बिल्ली उस पर झपट पड़ी और चूहा अपनी जान बचा महात्मा की गोद में कूद पड़ा । महात्मा ने उसका बचाव करते हुए कहा तो तुम बिल्ली से डरते हो । क्यों न तुम्हे बिल्ली ही बना दू । जाओ, और बिल्ली बन जाओ ।
वाह! चूहा तो सचमुच बिल्ली बन गया । परन्तु बिल्ली भी तो कुत्तों से डरती हैं । और वही हुआ एक दिन उस पर कुत्ते ने हमला कर दिया और बिल्ली झट से महात्मा के पास आ गई । महात्मा बोला- ओह तो अब तुम्हें कुत्ते से डर लगने लगा अच्छा, तो जाओ । तुम भी कुता बन जाओ । कहने की देरी थी । बिल्ली कुत्ते में प्रवर्तित हो गई । परन्तु क्या कुत्ता निडर हो सकता है? अब उसे शेर से डर लगने लगा । क्यों न तुम्हें शेर ही बना दू । कम से कम फिर तो तुम्हें किसी से डर नही लगेगा । और फिर सचमुच वह कमजोर चूहा देखते ही देखते एक शक्तिशाली शेर बन गया । परन्तु महात्मा तो उसे आज भी शायद चूहा ही समझ रहे थे।
शेर ने सोचा जब तक महात्मा जिंदा रहेगा । मुझे भी अपना पुराना रूप याद आता रहेगा । इसे समाप्त करने में ही मेरी भलाई है । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी इससे पहले कि शेर महात्मा पर हमला करे । महात्मा ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और बोले जाओ, अहसान फरामोश! दुबारा चूहा बन जाओ । तुम उसी लायक हो बलशाली शेर फिर दुबारा चूहा बन गया ।
शिक्षा –
भोजन देने वाले हाथो को कभी घायल नहीं करना चाहिए
आलसी गधा – Short Moral Stories in hindi For Class 1
किसी नमक व्यापारी के पास एक गधा था। जिस पर व्यापारी नमक लाद कर मंडी में बेचने ले जाया करता था। मंडी तक जाने वाले रस्ते में उसे एक छोटी सी नदी से होकर गुजरना पड़ता था। एक दिन नदी से गुजरते वक़्त गधे का पाव फिसला और वो नदी में गिर गया। व्यापारी ने उसे उठाने में उसकी मदद की उसकी किस्मत अच्छी थी की उसे चोट न लगी।
नमक क्योंकि पानी में घुल कर बे गया था। इसलिए गधे की पीठ पर लदे नमक का वजन बिल्कुल हल्का हो गई। अब उस पर कोई वजन न रहा। व्यापारी ने फिर घर वापसी का रास्ता अपना लिया। मंडी जाने का तो कोई लाभ ही नही था। गधे को तो मज़ा आ गया। अगले दिन फिर नमक लाद कर मंडी ले जा रहा था।तो गधा जानबूझ कर नदी में गिर गया। उसकी पीठ का वजन फिर कम हो गया।
व्यापारी को उसके मक्कारी समझ में आ गई। उसने अगले दिन गधे की पीठ पर एक रुई का एक बहुत बड़ा गट्टा लाद और उसे मंडी की ओर ले जाने चला। अरे गधा तो गधा ही था। न, नदी आते ही उसने फिर वही चाल चली। परन्तु इस बार बजन घटने की जगहा उल्टा बड़ गया रुई के गट्ठर में पानी जो भर गया था। अब तो गधे को चलना भी मुश्किल लग रहा था। जब गधा न चल पाया तो व्यापारी ने डंडे से उसकी खूब पिटाई की। फिर कभी गधे ने पानी में गिर ने की कोशिश नहीं की।
शिक्षा –
हमे अपना काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए
समझदार भेड़िया – Good Short Moral Stories In Hindi
एक भेड़िया बहुत समझदार और होशियार था। एक बार की बात है। जब वह जंगल में से गुजर रहा था। तो अचानक उसे एक मरा हुआ हाथी दिखाई दिया। भेड़िये ने अपने पंजे से उसकी चमड़ी उधेड़ने की कोशिश करी। परन्तु क्यूकि चमड़ी बहुत सख्त थी। उसे काटना या उधेड़ना भेड़िये की शक्ति के बाहर की बात थी।
अचानक एक बब्बर शेर वह आ धमका। भेड़िया बोला, महराज! मेरे मालिक में तो बस आप के लिये ही इसकी रखवाली कर रहा था। की कब आप यहाँ आये और में आपको ये भेट दे सकू। क्रपया आप इसे मेरी तरफ से स्वीकार करे। बब्बर शेर बोला, तुम्हारा धन्यवाद। परन्तु तुम तो मेरा स्वाभाव जानते ही हो में किसी दूसरे के द्वारा किये गए शिकार को। स्वीकार नहीं करता। में अपनी खुशी से तुम्हारी यह भेट तुम्हे सोपता हु। और बब्बर शेर अपने रास्ते हो लिया।
परन्तु मुसीबत अभी खत्म कहा हुई थी। अब एक साधारण शेर वहा आ पंहुचा। वह झट से बोला चाचा जी, चाचा जी। आप यहाँ मोत के मुँह में कहा घूम रहे है! चाचा जी इस हाथी को बब्बर शेर ने मारा है। और मुझे इसकी रखवाली के लिए रख छोड़ा है। जाते जाते राजा जी मुझे यह हिदायत दे गये थे। अगर कोई शेर इधर उधर से गुजरे तो मुझे सूचित कर देना। अब में इस जंगल के सारे शेरो का खात्मा कर दूंगा।
इतना सुनते ही शेर के पसीने छूट गए। उसने कहा, मेरे प्यारे भतीजे अब तो तुम ही मुझे बचा सकते हो। अगर मेरे बारे में तुम राजा जी को सूचित नहीं करोगे तो में बच जाऊंगा। अच्छा तो में खिसकता हु। यहाँ कहते हुए शेर रफूचक्कर हो गया। उसके जाने भर की देर थी की एक चिता वह आन पड़ा।
भेड़िये ने मन ही मन सोचा, की इसके दांत बहुत नुकीले है। क्यों न हाथी की चमड़ी इसी से कटवा लूँ। बस फिर क्या था वह झट से बोला। क्यों भानजे, कहा रहे इतने दिन? बड़े समय से नजर नहीं आये। और क्या बात, बड़े कमजोर और भूखे लग रहे हो। देखो यह जो हाथी है, इसे बब्बर शेर ने मारा है। मुझे इसका ध्यान रखने के लीये कहा गया है। परंतु अगर तुम इस हाथी का स्वादिस्ट मांस खाना चाहते हो। तो जल्दी से इसमे से चीर कर खा जाओ। परन्तु जल्दी करना कही राजा जी आ न जाये।
चिता बोला – नहीं मामा जी, मुझे लगता है। यहाँ मेरी सेहत के लिए ठीक नहीं। परन्तु भेड़िये ने फिर एक चाल चली। सुनो भानजे, हौसला रखो और खाना शुरू करो। जैसे ही बब्बर शेर मुझे दूर से दिखाई देगा में तुम्हे उसके आने की खबर दे दूंगा, तुम झट पट से भाग जाना। तो बस फिर क्या था। चिता भेड़िये के झांसे में आ गया और हाथी के पास पंहुचा। उसने जैसे ही हाथी की चमड़ी को उधेड़ा। भेड़िया चिलाने लगा, भानेज फुट लो – शेर आ रहा है। झट से चिता नो दो ग्यारह हो गया। इस तरह भेड़िये ने लम्बे समय के लिये अपने भोजन का प्रबन्ध कर लिया।
शिक्षा –
अक्लमंदी से से मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान किया जा सकता है।
सांप और चूहा – Hindi moral stories
काफी समय पुरानी बात है। एक सपेरे ने एक सांप को पकड़ा और बांस की टोकरी में कैद कर दिया। और तभी एक चूहे को भी पकड़ा। और सोचने लगा – ये चूहा मेरे सांप के लिए बढ़िया भोजन रहेगा। और सांप की ही टोकरी में चूहे को रख दिया। टोकरी के अंदर सांप जैसे ही चूहे को लपकने लगा। तभी चूहा बोल उठा – अरे सांप भाई मुझे मत मारो। अगर तुम मुझे नहीं मारोगे तो मैं तुम्हें यहां से आजाद करा सकता हूं। सांप हैरान था कि यह नन्ना सा चूहा मुझे कैसे आजाद करा सकता है। और बोला – जब मै इस कैद से निकलने में कामयाब नहीं हो सका तब तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो, देखो मुझे बहुत जोर से भूख लगी है।
चूहा बोला – फिर तो क्या फायदा मुझे खाकर तुम्हारा पेट तो वैसे भी नहीं भरने वाला अगर तुम मुझे बक्श दो तो में यहां से आजादी दिला सकता हूं। फिर तुम जितना चाहो और जहा चाहो वह भर पेट खाना खा सकते हो। मोटे मोटे चूहे, बढ़िया मेढक , चिपकलिया सब तुम्हें खाने को मिल सकती हैं। आगे तुम्हारी मर्जी।
सांप सोचने लगा – बात तो इसकी ठीक है। इसे भी तो मैं बाद में खा सकता हूं। ठीक है तो बताओ कि तुम मेरी कैसे मदद कर सकते हो। अगर तुम्हारी बात सही निकली तो मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा।
चूहा बोला – में तुम्हारे सिर पर बैठ कर मे एक मंत्र का उच्चारण करूंगा बस तुम्हें अपनी आंखे बंद करनी होगी। बस इतना ही, और जब मंत्र पूरे हो जाएंगे। मे तुम्हें बुलाऊंगा। पर याद रहें तब तक तुम न आंखे खोलेंगे और न ही हिलोगे डिलोगे समझे।
साप ने कहा – ठीक है जैसा तुमने कहा मे वैसा ही करूंगा। परन्तु बाहर निकलकर मेरी प्रतीक्षा करना। सांप ने अपनी आंखे बंद कर ली। चूहा सांप के सिर पर चढ़ गया और जल्दी जल्दी से वो अंदर से पिटारी को कतरने लगा। वहा पर एक बड़ा सा छेद हो गया चूहे ने वह से झट से छलांग लगाई। और रफूचकर हो गया। और थोड़ी देर बाद सांप ने भी अपनी आंखे खोली और वह भी छिद्र से बहार निकल लिया।
साप बोला – आजादी का भी अपना मजा है। तो पर अभी तो भूख बहुत सता रही हैं। अरे वो मूर्ख कहा गया। शैतान शायद भाग गया है। पर जाएगा कहा अभी ढूंढता हूं। उस नटखट शैतान को, और वह उस चूहे को इधर उधर तलाशने लगा। परन्तु चूहा तो कही खो गया था। कुछ दिनों के बाद सांप को चूहों का एक बिल नजर आया। और वह समझ गया कि शायद वो चूहा इस बिल में ही होगा। और चूहे की मुंडी जल्द ही उसे वह दिखाई दी। ये धोखे बाज यहां है अब ये मुझसे बचकर कहा जाएगा। अबे ओ चूहे तुम मुझे धोका देकर कहा छिप गए थे। अब बाहर आओ न क्यों सता रहे हो। हम तो पुराने मित्र है।
चूहा बोला – मित्र और तुम ये क्या कहते हो कही यहां मुमकिन है। ये तो हम दोनों जानते है कि हम मे मित्रता हो ही नहीं सकती। उस दिन तो तुम भी मजबूर थे और मैं भी इसीलिए उस दिन दोस्ती का नाटक हुआ। में तो अपनी जान बचाने के लिए मित्रता का ढोग कर रहा था। मित्रता हमेशा बराबरी वालों में होती हैं। कहा तुम इतने बलशाली और कहा मे इतना कमजोर हम कभी मित्र नहीं हो सकते, जाओ बाबा माफ करो। ये तो बहुत समझदार है इसे झांसा देना अब मेरे वश की बात नहीं। अब मुझे कई और जगह अपना भोजन ढूंढना चाहिए।
शिक्षा –
मित्रता हमेशा बराबर वालों के साथ करनी चाहिए।
टोपियों का व्यापारी – Short Stories in hindi For Class 2
एक समय की बात है एक टोपियों व्यापारी अपनी टोपिया बेचने के लिये दूर किसी शहर की और जा रहा था। चलते चलते दुपहर हो गई। वह थक गया था आराम करने के लिए एक बड़े पेड़ के निचे उसने अपनी टोपियों की टोकरी अपने कंधे से उतारी। अपने खाने का डिब्बा खोला और भोजन करने लगा।
जल्दी तो कोई थी नहीं, उसने सोचा क्यू न कुछ देर आराम कर लिया जाये। वह वही लेट गया और जल्दी ही गहरी नींद ने उसे घेर लिया। उसे क्या पता था, की वह एक ऐसे पेड़ के नीचे सोया हुआ है। जिसमे ढेरो बंदरो ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था। बन्दरों ने जब टोकरी में पड़ी हुई रंग बिरंगी टोपियां देखी तो उन्होंने टोपियों से खेलने का मन बना लिया। वे एक एक कर कर सभी निचे आ गये। और सभी ने एक एक टोपी उठा ली, और जल्दी ही सभी पेड़ पर चढ़ गये।
कुछ देर बाद टोपी वाले की आंख खुली जैसे ही उसकी नजर खाली टोकरी पर पड़ी, उसके पेरो तले से जमीन खिसक गई। वह परेशान हो उठा की उसकी सारी टोपिया कोई चोरी करके ले गया था। वह चिल्लाया – हाय हाय में लूट गया, बरबाद हो गया। कौन ले गया मेरी टोपियो को, अब मेरा क्या होगा।
परंतु जैसे ही उसकी नजर जरा उपर पेड़ की ओर उठी, तो हैरान रह गया। उसकी सारी टोपिया तो बंदरो ने पहन रखी थी। उसने गुस्से से हाथो को उपर किया। ताकि डर कर बंदर उसकी टोपिया नीचे फेंक दे। परन्तु ऐसा कुछ न हुआ, अपितु बंदर भी उसकी नक़ल कर उसे चिढ़ा रहे थे।
इससे उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी। पहले उसने अपने हाथो को हिलाया, उसी तरह बंदर भी अपने हाथ हिलाने लगे। फिर वो ऊपर नीचे कूदने लगा। बंदर तो नकलची होते ही है। बंदर भी ऊपर निचे कूदने लगे। फिर उसने अपनी टोपी अपने सिर से उतारी ओर जोर से उसे जमीन पर फेक दिया। फिर क्या था – सभी बंदरो ने उसकी नक़ल की और अपनी अपनी टोपी को उन्होंने भी जमीन पर पटक दिया। टोपी वाले ने अपनी सारी टोपिया इकट्ठी की और वापिस अपनी टोकरी में डाल ली। ओर अपने रास्ते चल दिया।
शिक्षा –
संकट आने पर ठंडे दिमाग से सोचो और समस्या को सुलझाओ।
हाथी और तोता – stories with moral in hindi
एक तोता बहुत लम्बे समय से पिंजरे में रह रह कर तंग आ चुका था। वहा चाहता था की वह खुले आकाश में उड़े। बहुत प्रयत्न करके आखिर कार तोता पिंजरे से बहार निकल गया और उड़कर बाहर जंगल में जा पहुंचा। तोते को जंगल का वातावरण बहुत पसंद आया। वहा हर रोज तरह तरह के मीठे फल खाता था। पागलों जैसा उछलता कूदता जंगल के चारो और घूमता अपना जीवन बहुत खुशी खुशी बिताने लगा।
एक दिन तोते को एक बड़े पेड़ के नीचे एक एक सोता हुआ हाथी दिखाई दिया। उसे देखते ही उसने, उस सोते हुए हाथी को नींद से जगना चाहा। बहुत तेजी से वहा पेड़ से नीचे आया और अपनी चोंच से हाथी की सूंड पर चोंच मारी। उससे हाथी की नींद खुल गई, जब हाथी ने चारो तरफ देखा तो उसे पेड़ पर बैठ हुआ एक तोता दिखा जो हस रहा था।हाथी नाराज हुआ और तोते से बोला अरे तोते क्या परेशानी हैं। तोता बोला – मजाक हैं मेरे दोस्त और हसने लगा। हाथी को कुछ फर्क नही पड़ा और वो आंखे बंद करके फिर से सो गया। कुछ देर बाद वापस से तोता नीचे आकर हाथी को परेशान करता है। और तुरंत वहा से उड़ कर उपर पेड़ पर चला गया। हाथी जोर से चिलाय – अरे तुम फिर से आ गए क्या तुम्हे कुछ काम नही है क्या।
पर तोते को ये सब करने में बड़ा मजा आ रहा था, बार बार वो हाथी की परेशान करने लगा। हाथी तोते से बहुत तंग आ गया। उसने कुछ करना नही चाहा और वहा से उठ कर चल दिया।तोते को और मजा आया और एक और बार जाकर हाथी को अपनी अपनी चोंच से मारा। हाथी को बहुत घुस्सा आया और घूंसा होकर तोते को सबक सिखाने का निर्णय लिया। फिर हाथी एक तालाब के पास गया और अपने सिर को छोड़ सारा शरीर पानी में डूबा लिया। हाथो को देख तोते को मजा आया और सोचने लगा कि मुझे डरकर हाथी पानी में छिप गया।
वहा फिर से जाकर हाथी के सिर पर बैठ गया और उसे अपनी चोंच से मारने वाला था। हाथी को पहले से पता था की तोता फिर से आएगा इसलिए उसने पहले ही अपने सूंड में पानी भर कर रखा था। तोता अपनी चोंच से हाथी को मारने ही वाला था इतने में हाथी ने अपनी सूंड से पानी को तोते पर फेक और वहा तालाब में गिर गया। वहा पानी में डूब रहा था। तभी हाथी को तोते पर दया आई और उसे पानी से निकाल कर जमीन पर ले आया। तोते ने हाथी से माफी मांगी, उसे अच्छा सबक मिल गया। और हाथी जोर से हस कर वहा से चला गया। तोते को बड़े और छोटे के बीच अंतर पता चल गया
शिक्षा –
अपने से बड़े लोगों का सदा सम्मान करना चाहिए
तेनाली राम – Short Moral Stories For Student In Hindi
बहुत वर्ष पहले की बात है। विजय नगर में एक राजा राज करता था। उसका नाम था कृष्णा देव राय। एक उसके राज्य में चूहों की भरमार हो गई। जिधर देखो उधर चूहे ही चूहे नजर आ रहे थे। राजा ने हुक्म सुनाया हर घर में एक बिल्ली अनिवार्य रूप से पाली जाये। प्रतियेक घर में एक एक गाय प्रदान की जाये। ताकि बिल्ली को दूध पर्याप्त मात्रा में मिल सके।
परन्तु तेनाली राम का एक वजीर इस आज्ञा से नाखुश था। उसके अनुसार यह सारा प्रयोजन ही मूर्खतापूर्ण था। उसने एक तरकीब सोची। पहले ही दिन उसने अपनी बिल्ली के आगे खौलते हुए दूध का कटोरा उसके पीने के लिये रख दिया। बिल्ली ने जैसे ही उसमें मुँह डाला। उसका मुँह जल गया, उसकी आंखे बाहर निकलने को हो रही थी। वह झट से दौड़ गई।
राजा को सभी और पूरी तरह बलिष्ठ बिल्लियां नजर आने लगी। वह अपनी आज्ञा से बहुत प्रसन्न था। वह घर घर जा कर खुद देखता था, की सब ठीक ठाक है या नहीं। आखिर में वह तेनाली राम के घर पंहुचा। राजा को तेनाली राम के यहाँ बिलकुल कमजोर हड्डियों का ढांचा बनी बिल्ली देखकर गहरा झटका लगा।
राजा ने पूछा, क्या सारा दूध तुम खुद ही पीये जा रहे हो? तेनाली राम बोला महराज, अगर आप जान बक्शे तो सबकुछ सच सच आप से कह दू। राजा बोले – हा हा, तुम निर्भय हो कर, सब विस्तार से बताओ। महराज पता नहीं क्या हुआ, मेरी बिल्ली तो दूध ही नहीं पी रही है। राजा बोले। यहाँ कैसे हो सकता है? तेनाली राम – आप स्वयं ही देख ले महाराज। तेनाली राम ने दूध का कटोरा रखा और जैसे ही उस बेचारी बिल्ली ने दूध का कटोरा देखा वह डर कर भाग गई।
अब तो राजा को सारा मामला समझने में देर न लगी। की तेनाली ने क्या किया था। उसने हुक्म सुनाया, तेनाली राम को बंदी बना दिया जाये। और उसकी पीठ पर सो कोड़े लगाये जाये। तेनाली राम ने नजरे उठाए बिना कहा, ठीक है महराज मुझे सख्त से सख्त सजा दे। परन्तु जरा सोचिये कि हम देशवासियो के पीने के लिये भी जब दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हे। तो क्या यह मूर्खता नहीं है की हम सारा दूध बिल्लियों को पिला दे।
राजा को बात समझ में आ गई। उसने तेनाली राम को माफ़ कर दिया। और अपने देशवाशियो को, वह गाय उनके परिवार को दूध पिने के लिये ही रखने के लिए कह दिया। बिल्लिया तो चूहे खा कर भी अपना पेट भर सकती थी।
शिक्षा –
मानव की सेवा सर्वोत्तम है।
गधे की सवारी – Moral Stories in hindi For Class 3
किसी दूर दराज के एक गांव के मेले से, एक बाप और उसका बेटा अपने गांव की और लौट रहे थे। मेले में से उन्होंने एक गधा खरीदा था। रास्ते में उन्होंने सुना की कोई बोल रहा था। अबे देखो इन मूर्खों को, गधा इनके पास है। फिर भी दोनों पैदल चल रहे है। दोनों ने सोचा बात तो ठीक है। और वो दोनों गधे की पीठ पर चढ़ गए। रास्ते में उन्होंने फिर सुना कि कोई व्यक्ति फिर कुछ कह रहा था। अरे देखो देखो उस गरीब गधे को, दोनों हटे कट्टे मुस्टंडे किस तरह उसका कचुंबर निकाल रहे हैं। बेचारा मुश्किल से ही चल पा रहा है। बाप को दया आ गई। वह गधे की पीठ पर से नीचे उतर गया।
जब वे खेतों के पास से गुजर रहे थे। तो एक औरत की आवाज उनके कानों में पड़ी। लड़का भी कितना बेशर्म है, बेचारा बुढ़ा तो पैदल चल रहा है। और लड़का गधे की सवारी का मजा लूट रहा है। अच्छा होता यदि वह पैदल चलता और अपने बाप को गधे पर चढ़ने देता। लड़का नीचे उतर आया, और बाप गधे की पीठ पर सवार हो गया। वो अभी गांव के पास पहुंचे ही थे कि एक पास से गुजरता हुआ व्यक्ति बोला वाह भाई वाह पहली बार ऐसा स्वार्थी आदमी देखा है। जो आप तो मजे से गधे पर लदा हुआ है। और अपने मासूम बेटे को पैदल चलने पर मजबूर कर रहा है, बस फिर क्या था। उन दोनों ने गधे को बांस के साथ उल्टा बांधकर अपने कंधों पर उठा लिया और अपने घर की ओर चल दिए।
जैसे ही वे घर के पास पहुंचे सब लोगों की हंसी फूट पड़ी। हा,,,, हा,,,, हा,,,, हा एक बुजुर्ग गांव वासी आगे बढ़ा और पूछने लगा हा,,,, हा,,,,हा,,,,हा,,,, गधे को इस तरह उल्टा लटका कर क्यों ला रहे हो। क्या यह लंगड़ा लूला है। की यह चल नहीं सकता? बाप ने रास्ते में जो हुआ वो सब जब उसने उन्हें विस्तार पूर्वक बताया तो वह बुजुर्ग बोला अपने दिमाग का प्रयोग ना करके, तुम दूसरों के कहे अनुसार सब करते रहे। इसलिए आज सब तुम पर हंस रहे हैं। वह बोला – आप ठीक कहते हैं श्रीमान।
शिक्षा –
सबको खुश नहीं किया जा सकता है
हाथी की मित्रता – 2023 Short Moral Stories in Hindi
बहुत समय पुरानी बात है। एक हाथी एक जंगल में किसी मित्र की तलाश में इधर उधर घूम रहा था। तभी उसे एक पेड़ पर एक बंदर दिखाई दिया। हाथी बोला – बंदर भाई क्या तुम मेरे मित्र बनोगे ? बंदर बोला – आप तो बहुत बड़े हैं। आप मेरी तरह एक पेड़ पर झूल भी नहीं सकते तो फिर आपकी मेरी दोस्ती कैसे। यहाँ सुनकर हाथी उदास होकर वह से चल दिया।
अगले दिन उसकी मुलाकात एक खरगोश से हुई। हाथी बोला – क्यूँ , खरगोश भाई। क्या तुम मेरे मित्र बनना पसंद करोगे ? खरगोश बोला – आप तो बहुत बड़े हैं। आप मेरे बाड़े में घुस भी नहीं सकेंगे मेरी आपकी दोस्ती मुमकिन नहीं है।
हाथी अब मेंढक के पास पहुंचा और बोला – मेरा कोई मित्र नहीं है। मेंढक भाई , तुम अगर मुझे अपना दोस्त बना लो तो तुम्हारी बड़ी कृपा होगी। मेंढक बोला – अरे वाह , मान न मान मैं तेरा मेहमान। तुम इतने बड़े और मैं इतना छोटा कुछ तो सोचो ,यह बेमेल की दोस्ती नहीं हो सकती। और तुम मेरी तरह फुदक भी तो नहीं सकते। जाओ भाई , कहीं और अपनी दाल गलाओ।
अचानक हाथी को एक लोमड़ी दिखाई दी उसने उसे रोका और पूछा। लोमड़ी सुनो, क्या तुम मुझे अपना मित्र बनाना पसंद करोगी? देखो , ना मत कहना। मैं बड़ी उम्मीद से तुम्हारे पास आया हूँ। बोलो, बनोगी न तुम मेरी मित्र। लोमड़ी बोली – न बाबा न , अपना साईज़ तो देखो गलती से मैं तुम्हारे पाँव के नीचे आ गई तो मेरी तो चटनी बन जाएगी, कोई और घर देखो।
हाथी ने मन ही मन सोचा – कमाल है, कोई मुझे अपना मित्र ही नहीं बनाना चाहता। अगले दिन हाथी ने देखा कि जंगल के सभी जानवर बहुत तेज़ी से भाग रहे थे। उसने लोमड़ी से पूछा, क्या हुआ ? क्यों भाग रहे हो ? लोमड़ी बोली – हाथी दादा , पीछे शेर है और वह हम सबको मारकर खा जाना चाहता है। तभी सभी जानवर अपनी अपनी जान बचा कर कहीं छुप जाना चाहते हैं। शेर तो जानवरों के पीछे हाथ धोकर पड़ा गया था। हाथी ने शेर से कहा – श्रीमान, क्यों व्यर्थ में इन सबकी जान के पीछे पड़े हो ? सारे जानवरों को क्या एक ही दिन में मार दोगे ? शेर बोला – जा जा , अपना रास्ता देख, तुझे क्या। जो मेरा दिल करेगा, करूंगा।
हाथी को समझ आ गया कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। उसने शेर को जोर से एक लात मारी और शेर के होश ठिकाने आ गए। और वह डर कर भाग गया हाथी ने सबको जब यह खुशखबरी सुनाई तो सबकी खुशी का ठिकाना न रहा। सभी ने हाथी को धन्यवाद दिया और कहा हमारा मित्र बनने के लिए सचमुच तुम्हारा साईज़ बिलकुल ठीक है
शिक्षा –
सच्चा मित्र वही होते है, जो मुसीबत में काम आए।
जादुई चक्की – Akbar Birbal Short Moral Stories In Hindi
एक गांव में दो भाई अपने अपने परिवार के साथ रहते थे। एक भाई अमीर था और दूसरा भाई गरीब था। दिवाली आई सारे गांव में खुशियां मनाई जा रही थी। परन्तु छोटे भाई के पास खाने लायक कुछ भी नहीं था। वह बड़े भाई के पास मदद मांगने गया । बड़े भाई ने उसे दूत-कार के भगा दिया। बेचारा उदास लोट रहा था की रास्ते में एक बूढ़ा दिखाई दिया। बूढ़े के पास लकड़ियों का एक बड़ा सा गठ्ठा था। बूढ़े ने उससे पुछा क्या बात है बेटे बहुत उदास हो। दिवाली पर तो खुश होना चाहिए।
वह बोला – काई की दिवाली ताव मेरे भाई ने भी मेरी मदद नहीं की ओर मेरा परिवार भूखा मर रहा है। और में कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं। बूढ़ा व्यक्ति बोला – जब तो तुम मेरी मदद करो और इन लकड़ियों के गट्ठे को मेरे घर तक पहुंचा दो। में जो तुम्हें दूंगा उससे तुम अमीर हो जाओगे।
छोटा बूढ़े के पीछे चलता हुआ। लकड़ियों के गठे को लेकर उसके घर छोड़ आया। बूढ़े ने छोटे को एक मालफुआ दिया फिर बोला – जंगल में जाना एक जगह अजीब तरह के तीन पेड़ तुम्हें दिखेंगे। जिसके पास एक चट्टान ध्यान से देखोगे तो चट्टान के कोने में एक गुफा का मुंह दिखेगा और गुफा में चले जाना वह तीन बोने रहते हैं उन्हें मालफूआ बहुत पसंद हैं। वो इसे किसी भी कीमत पर छोड़ेंगे नहीं। तुम उन से धन मत मांगना बल्कि कहना की एक पत्थर की चक्की दे दो।
छोटा भाई गुफा में पहुंचा और उसके हाथ में मालफुआ देख कर एक बोना बोला ये मुझे दे दो मैं इसके बदले में तुम्हें जो कहोगे वो दे दूंगा। छोटा बोला मुझे बस मेरी पत्थर की चक्की दे दो । छोटा जैसे ही चक्की लेके चलने लगा बोना बोला – इसे मामूली चक्की मत समझना इसे घूमने पर तुम जो मांगोगे वो निकलता रहेगा। इच्छा पूरी होने पर इस पर लाल कपड़ा डाल देना। समान मिलना बंद हो जाएगा।
चक्की लेकर छोटा भाई घर पहुंचा। पत्नी और बच्चे भूखे थे उसने कहा यहां पर एक कपड़ा बिछाओ। कपड़ा बिछाकर चक्की उस पर एक किनारे रख कर छोटे ने चक्की चलाई और बोला चक्की चक्की चावल निकाल, कुछ ही देर में वह चावलों का ढेर लग गया। लाल कपड़े से चक्की को ढककर , छोटे ने फिर कपड़ा हटाया और दोबारा चक्की चलाकर बोला चक्की चक्की दाल निकाल ढेरों दाल निकलती रही। छोटे ने थोड़ी देर बाद चक्की को ढक दिया। दाल चावल बनाकर सब लोगों ने अपना पेट भरा। रात सभी ने अच्छे से नीद ली और बचे ढेरों को सुबह चावल, दाल को लाद कर छोटा अगले दिन बाजार में बेच आया।
वापिस आकर उसने वहीं क्रम अपनाया ढेरों गेहूं, चावल भिन्न भिन्न दाले चक्की की मदद से निकाली और बेच कर ढेरों सारे पैसे कमाए। कुछ दिनों में ही वह अपने भाई से अधिक अमीर हो गया चक्की की मदद से कभी घी, दाल चावल गेहूं , तेल, मिर्ची मसाले, नमक कपास, बादाम उसे जो चाहे प्राप्त होता रहता था। बड़ा भाई उसकी खुशहाली से जलने लगा। उसने सोचा चंद दिनों में पहले तो ये भूखा मर रहा था। अब इस हाथ क्या लगा जो ये मुझसे भी अधिक धनी हो गया है। वो चुपचाप एक रात छोटे के घर में छिप गया और सारा भेद उसके सामने खुल गया। अगले दिन जब छोटा बाजार में बेचने गया था तब बड़ा भाई छोटे के घर पहुंचा और उसके घर से चक्की चुराकर ले आया।
और अपने परिवार को लेकर दूर कहीं टापू पर जाकर बसने के इरादे से घर से चल पड़ा।समुंद्र किनारे पहुंच कर उसने एक नाव खरीदी और उसमे सब बैठ गए और बैठ कर सभी टापू की ओर चल दिए। उसकी पत्नी ने सोचा कि ये बेकार सी चक्की लेकर उसका पति सारा घर भार छोड़ कर हम सब को लेकर कहा जा रहा है। बड़े भाई ने पत्नी की जिग्यशा शांत करने के लिए चक्की को घुमाया और बोला चक्की चक्की नमक निकाल बस फिर क्या था। नमक का ढेर नाव में लगना शुरू हो गया। और नाव डूबने लगी और बड़े भाई को चक्की बंद करने का उपाय तो पता नहीं था। उन सबकी जल समाधि बन गई। सभी चक्की समेत समुद्र में डूब गए। कहते हैं चक्की अब भी घूम रही हैं। तभी तो समुंद्र का पानी खारा है।
शिक्षा –
लालच बुरी बला है।
बुद्धिमान बंदर और मगरमच्छ – Inspiration Short Moral Storie In Hindi
एक घने जंगल के बीचों बीच एक विशाल नदी बहती थी। उस नदी में एक बूढ़ा मगरमच्छ रहता था। बूढ़ा होने को वजह से वह शिकार नहीं कर पाता था।एक दिन उसे जोरों की भूख लगी। उसने सोचा नदी के बाहर जाकर शिकार करना तो मुश्किल है। नदी में ही मछ्ली खाकर पेट भर लेता हूं। जैसे ही वह मछ्ली पकड़ने लगा। मछ्ली उसके हाथ से निकल गई। तो वह भूखा और थका हारा नदी के किनारे जामुन के पेड़ के नीचे जाकर आराम करने लगा। उस पेड़ पर एक बंदर जामुन खा रहा था। उसकी नजर बंदर पर पड़ी उसने उससे पूछा बंदर भाई तुम क्या खा रहे हो जरा मुझे भी कुछ दे दो। बहुत भूख लगी है।
बन्दर बोला – भाई ये जामुन है। बहुत मीठा फल है। ये लो तुम भी खाओ। मगरमच्छ – आरे हा ये तो सचमुच बहुत मीठे फल है। शुक्रिया मुझे बहुत भूख लगी थी। तुमने मेरी मदद की। तुम बहुत अच्छे हो। मुझे बहुत खुशी होगी तुम जैसा कोई मेरा भी दोस्त हो। बन्दर बोला – हा क्यों नहीं आज से तुम मेरे दोस्त हो। में इसी पेड़ पर रहता हूं। तुम्हें जब भी भूख लगे मुझ से कहना। में तुम्हें जामुन तोड़ कर दे दिया करूंगा। इस तरह मगरमच्छ रोज पेड़ के किनारे आता और रोज बंदर उसे जामुन खिलता। दोनो खूब मजे करते दोनो अब बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे।
कभी मगरमच्छ पेड़ के पास आकर खेलता तो कभी बंदर मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर नदी की सैर करता। मगरमच्छ – बंदर भाई ये जामुन में अपनी पत्नी को भी खिलाना चाहता हूं। तुम मुझे थोड़े जामुन तोड़ कर दे दो न प्लीज में अपने साथ ले जाऊंगा। बन्दर – अभी तोड कर देता हूं। बंदर ने मगरमच्छ को जामुन तोड़कर दे दिया। और वो अपनी पत्नी के लिए जामुन लेकर चल दिया। जामुन लेकर वो नदी के दुसरे किनारे पर पहुंचा। जहां उसकी पत्नी रहती थी और बोला – अरे देखो में तुम्हारे लिए क्या लाया हूं। जामुन, ये मेरे दोस्त बंदर ने तुम्हारे लिए भेजे है।
उसकी पत्नी ने जामुन खाए और बोली – अरे वा ये जामुन तो बहुत मीठे है। पर कब तक ये जामुन खा खाकर गुजरा करेंगे। सोचो न ये जामुन इतने मीठे है तुम्हारा दोस्त तो रोज ये मीठे जामुन खाता है। तो वह कितना मीठा होगा। मगरमच्छ – हा वह बहुत अच्छा है। वो खुद भी खाता है और मुझे भी खिलाता है। उसकी पत्नी बोली – मे सोच रही हूं उसका दिल कितना मीठा होगा। बहुत दिनों से मांस का सेवन नहीं किया है। तुम मुझे उसका दिल लाकर दे दो न, पत्नी की इस बात को सुनकर मगरमच्छ सोच में पड़ गया। और अपनी पत्नी से बोला – ये मैं कैसे कर सकता हूं। बंदर मेरा दोस्त हैं। में उसके साथ धोका केसे कर सकता हूं। अगर मैं उसका दिल ले आया तो वह मर जायेगा। उसने मुझे खाना खिलाया था। अब मैं तुम्हारे लिए उसकी ही जान ले लू,
मगरमच्छ की पत्नी बोली – मुझे कुछ नहीं सुनना मुझे बस उस बंदर का दिल चाहिए। जाओ मुझे लाकर दो। वरना मैं अपनी जान दे दूंगी। मगरमच्छ अपनी पत्नी की बात सुनकर मजबूर हो गया। ओर दुःखी मन से बंदर के पास पहुंचा। ताकि वो उसे अपने साथ घर चलने के लिए मना सके। वह पहुंचकर मगरमच्छ बन्दर से बोला – बंदर भाई बंदर भाई मेरी पत्नी ने तुम्हारे दिया जामुन से खुश होकर तुम्हें खाने पे बुलाया है। चलो आज तुम मेरे घर पर चलकर हमारे साथ ही भोजन करना।
बन्दर बोला -अरे वा चलो। बंदर ने मगरमच्छ के साथ चलने के लिए हा कर दी। और दोनो चल दिए। दोनों दोस्त मजे से जा रहे थे। तो रास्ते में बंदर ने मगरमच्छ से पूछा वैसे दोस्त तुम्हारी पत्नी खाने में क्या बनाने वाली है। मगरमच्छ बोला – तुम्हें केले बहुत पसंद हैं न, तो वो केले की सब्जी पूरी खीर बनाएगी। खास तुम्हारे लिए
बन्दर – अरे वा, आज तो बढ़िया दवात होगी। मजा आयेगा। मेरे मुंह तो अभी से पानी आ गया। बंदर की बाते सुनकर मगरमच्छ को लगा कि उसे बंदर को अपनी पत्नि की इच्छा के बारे में बता देना चाहिए। बेचारा बंदर क्या क्या सपने देख रहा है। इसे तो पता भी नहीं है कि मेरी पत्नी इसे देखते ही पक्का कर खाने वाली है। क्या करू मैं बंदर को सारी बात बता दूं? मगरमच्छ बोला – अरे बंदर भाई में तुम्हें एक बात बताना चाहता हूं। मेरी पत्नी तुम्हारे दिल को खाना चाहती हैं। मुझे माफ कर देना दोस्त अगर उसने तुम्हारा दिल नहीं खाया तो वह मर जायेगी।
बंदर ने मगरमच्छ की बात सुनी और तुरंत एक तरकीब सोची। बंदर भी कुछ कम नहीं था बोला – अच्छा क्यों नहीं जरूर पर दोस्त तुमने मुझे ये बात चलने से पहले क्यों नहीं बताई। हम बंदर अपना दिल पेड़ पर ही संभाल कर रखते हैं। अब हमे उसे लेने वापस जाना पड़ेगा। तुम मुझे फिर से पेड़ के पास ले चलो। मगरमच्छ उसके झांसे में आ गया और बोला – ओ मे भी कितना पागल हूं। अब हमे फिर से वापसी जाना पड़ेगा। अच्छा ठीक है। चलो हम चलकर तुम्हारा दिल ले आते हैं।खाली हाथ गए तो वो मेरा दिल निकलकर खा जायेगी। मगरमच्छ बंदर को वापिस पेड़ तक ले आया।
बंदर जैसे ही अपने पेड़ के पास पहुंचा कूद कर उस पेड़ पर चढ़ गया। और मगरमच्छ से बोला अरे बेवकूफ क्या कोई दिल बाहर निकलकर जिंदा रह सकता है क्या मेने तुझे अपना दोस्त समझा और तुझे खाना खिलाया तुम्हारी मदद की और तूने मेरी दोस्ती का ये सिला दिया। अब तुझे न ही जमुन मिलेंगे न ही दिल चल भाग यह से बंदर ने अपनी समझदारी से अपनी जानें बचाई। मगरमच्छ को अपनी बेवकूफी की वजह से अपनी जान और जामुन दोनो से हाथ धोने पड़े
शिक्षा –
हमें मुश्किल के वक्त घबराना नहीं चाहिए। समझदारी से काम लेना चाहिए
जादुई गोली और सोना – Short Moral Stories For Class 4 in hindi
बहुत पुरानी बात है। एक गांव से चार मित्र रहते थे वे एक दिन एक महान सिद्ध पुरुष ब्रह्मानंद की कुटिया पर पहुंचे। ब्रह्मानंद के पास अनेको शक्तियां थी। ब्रह्मानंद अभी अपनी कुटिया की ओर जा ही रहे थे। पर जैसे ही उन्होंने चारों को देखा वे बोल उठे क्या चाहिए तुम्हे। यह क्या करने आए हो। वे चारो बोले – हमे आपका आशीर्वाद चाहिए। श्रीमान सिर्फ आशीर्वाद। कुछ और भी हमे मालूम है किआपके पास बहुत सिद्धियां है कृपया आप हमारी मदद करे। हम अपना घर बार सब त्याग कर आपके पास पहुंचे है। हमे श्रोत सोना चाहिए। या तो हम मरना पसंद करेंगे या कुछ पाना। हमे मालूम है कि भाग्य के सहारे कुछ होने वाला नहीं। इसलिए हम हाथ पे हाथ धरे बैठे नही रहे सकते। आप हमारा मार्गदर्शन करें। आपकी आसिम कृपा होगी।
ब्रह्मानंद – लगता है तुम लगन के पक्के हो। मुझे तुम्हारे लिए कुछ करना ही होगा। में तुमरी मदद करूंगा। ब्रह्मानंद कुटिया से बाहर आए। तो उनके हाथ में चार गोलियां थी। में तुम चारों को एक एक गोली दूंगा। इन्हे लेकर पहाड़ों की ओर चल देना। जहा जहा किसी एक की भी गोली हाथ से गिरे जाए। जहा वह गोली गिरे, वही खोदना चालू कर देना। वह तुम्हे गड़ा हुआ खजना हाथ लगेगा। उसे लेकर अपने अपने घर लोट जाना। चारो मित्र बहुत खुश हुए और बोले – धन्यवाद श्रीमान, और चारो मित्र पहाड़ों की ओर चल दिया। सबके हाथो में एक एक कुदाल थी। चलते चलते एक के हाथ से गोली फिसल कर गिर पडी। वह बोला अरे देखो मेरे हाथ से गोली यह गिर गई है। आओ खुदाई करे। हा हा खुदाई करो और खजाना निकाल लो।
कुदाली पे कुदाली चलाने लगे। और जल्द ही वह एक गहरा गड्ढा हो गया। अरे देखो कच्चे तांबे के कितने बड़े बड़े ढेर। क्यों न इसे आपस में बाट ले। और घर चले। मूर्ख हम कोई तांबे एककट्टा करने घर से नहीं निकले थे। हमे तो सोना चाहिए सोना शुद्ध सोना तांबे से कितने दिनों तक हमारा गुजरा हो पाएगा। चारों के हिसाब से तो ये कम ही है। हमे और आगे बढ़ाना चाहिए। फिर सोचेंगे।उनमे से एक बोला – तुम्हारी मर्जी भाई में तो अब आगे नहीं जाऊंगा। मेरे अकेले के लिए तो ये तांबा पर्याप्त है। सारी जिंदगी भी खर्च करू तो भी समापत नहीं होगा में तो घर जाना ही पसंद करूंगा। वह तांबे की गठरी उठा घर की ओर चल पड़ा।
बाकी तीनों पहाड़ की ओर बढ़ गए। अभी वे कुछ ही दूर गए थे की दुसरे मित्र के हाथ से भी गोली फिसल कर गिर गई। खुदाई करने पर चांदी के बड़े बड़े पत्थर उनके हाथ लगे। वह बोला – अब लालच नही करना चाहिए। चांदी भी काफी मूल्यवान होती है। जो मिला है उसे आपस मे बाट लेते हैं। घर छोड़े भी बहुत दिन हो गए हैं। चलो इसे लेकर लोट चले। तीसरा मित्र बोला – ये भी न देखे की आगे हमे क्या मिलने वाला है। क्या पता आगे सोना ही मिल जाए। दूसरा मित्र – मूर्खों जैसी बात मत करो। इस गठरी को उठा और आगे बढ़ चलते हैं। मुझ से अब आगे नहीं चला जायेगा। थक गया हूं, मुझे तो चांदी में ही संतोष है। तुम्हें जाना हो तो जाओ।
तीसरा मित्र – जैसी तुमहरी इच्छा हम तो सोने लिए बिना नहीं लोटने वाले। वे दोनो पहाडी मार्ग पर और आगे बढ़ते गए। और तीसरी गोली भी एक के हाथ से फिसल गई। वे खोदने लगे। और इस बार सचमुच सोना हाथ लग गया। देखा हमने हिम्मत की तो हमारे हाथ सोना लग ही गया। जल्दी से गठरी बांध कर घर लोट चलते हैं। और आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। चौथा मित्र – अबे मूर्ख हो गया है क्या, क्या तूने देखा नहीं हर बार हमे पहले से ज्यादा मूल्यवान वस्तुएं हाथ लगी है। अब तुम लौटने की बात करने लगे। अभी हमारे पास एक गोली और है, क्या पता अब की बार हीरे ही हमारे हाथ लगने हो।
तीसरा मित्र – भाई हमने तो सोने की ही इच्छा की थी। अब जब वो अपने हाथ ही लग गया है तो आगे बढ़ने का क्या फायदा। चलो लोट चलते हैं। घर चलते हैं। चौथा मित्र – नही मे और आगे जाऊंगा में तुम्हारा यही इंतजार करूंगा। तीसरा मित्र – हा ठीक है। चौथा मित्र आगे बढ़ गया। और थक हार के वो टूट गया था। परन्तु और मूल्यवान वास्तुओ की इच्छा से वह आगे बढ़ता गया। न जाने ओर कितना आगे जाना पड़ेगा। में तो शायद रास्ता भूल गया हूं। गोली भी तो नहीं फिसल रही है।
उसे कई से करहाने की आवाज आई। हाय हा हाय, उसने देखा एक आदमी के सिर के ऊपर सुदर्शन चक्र जैसा एक पहिया घूम रहा था। वह लहू लुहान था। चौथा मित्र बोला – अपने सिर पर रथ का पहिया उठाया यह क्या कर रहे हो। अचानक वह पहिया उस व्यक्ति के सिर से उड़कर चौथे मित्र के सिर पर आने लगा। यह क्या हुआ। तुमने यह क्या किया। अरे इसे मुझसे दूर रखो।
वह आदमी बोला – हाय मैं कुछ नहीं कर सकता। ये तो दौलत के देवता कुबेर भगवान का पहिया है। अपनी दौलत को बचाने के लिए ही ये पहिए चलाया है। में भी धन की खोज में यह तक आ भटका था। अब जब ये पहिए तुम्हारे सिर पर घूमता रहेगा। तुम तड़पोगे तो जरूर पर खुरदार तुम्हे कभी भूख नहीं लगेगी। भूख, प्यास, बुढ़ापा कभी नहीं सताएगा। और जब कोई और मेरी या तुम्हारी तरह हिरो की खोज करता हुआ यह तक आयेगा तब जाकर तुम्हारा छुटकारा होगा। तब तक इस दर्द को तो तुम्हे लंबे समय तक सहना पड़ेगा बरकुरदार।
तीसरा मित्र बोला – तुम यह कब से ये सह रहे थे। वह आदमी बोला – अब मुझे याद नहीं बस यही समझो की मेरी जादुई गोली पहली बार गिरी थी। तो उस वक्त भगवान कृष्ण द्वारका के राजा बने थे। लोभ का मारा हुआ में तांबा चांदी सोने को छोड़ यह हीरे की खोज में चला आया था। अब आगे की कहानी तो तुम जान ही गए हो। देखो मेरे जख्मों को हरा मत करो। तुमने मुझे आजाद किया। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। इतना कह कर वह व्यक्ति वहा से चल दिया। और वह तीसरा मित्र उसकी प्रतीक्षा करता हुआ वह थक गया था। वो सोचने लगा – जाने मेरा मित्र कहा है। कही वह मुसीबत में तो नहीं फस गया। जिद करके वह आगे भी तो चला गया।
वह उसे खोजता हुआ वह तक जा पहुंचा। तो तुम यह हो यह क्या कर रहे हो। चलो घर चलते हैं उतारो इस पहिए को मेरे साथ चलो सोने को आधा आधा बांट लेंगे। नही भाई में तुम्हारे साथ नही जा पाऊंगा। ये तो किस्मत का पहिया है। और चौथे मित्र ने अपनी व्यथा उसे बताई। जब सारी बात खत्म हो गई। तो वह बोला – तुम कहते हो यह किस्मत का पहिया है। नही यह तुम्हारे लालच का पहिया है। जब तुम्हे सोना भी हाथ लग गया तो तुम्हारा लोभ समाप्त नहीं हुआ। तुमने जिद की तुम्हे हीरे चाहिए। अब भुगतो अपनी करनी का फल । तीसरा मित्र जाते हुए मन में सोच रहा था। मे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता।
शिक्षा –
महत्वकांक्षी होना अच्छा है
पर अति महत्वकांक्षी नहीं
करोड़ीमल – Short Moral Stories For Class 5
बहुत सालो पहले की बात है। भारत के किसी गाउ में करोड़ीमल नाम का अमीर परन्तु कंजूस आदमी रहा करता था। एक बार जब वह कही दूर से अपने घर आ रहा था। रास्ते में उसने एक खजूर का पेड़ दिखा जिसमे बहुत ऊचाई पर रसदार पकी हुए खजूर लटक रही थी। वह सोचने लगा – कितने बडिया खजूर यहाँ लटक रहे है। यदि में किसी तरह इन तक पहुंच जाऊ तो बिना खर्च इतने बढ़िया फल खाकर मजा आ जायेगा।
पेड़ तो वह कई बार चढ़ चूका था, इसलिए वह धीरे धीरे पेड़ पर चढ़ता गया, और फिर पेड़ के शिखर पर पहुंचने में कामयाब भी हो गया। उसने हाथ आगे बढ़ाकर कुछ खजूर तोड़ लिए। लेकिन जैसे ही उसकी नजर जमीन पर पड़ी, वो घबरा गया। बाप रे….. इतनी ऊचाई तो मेने सोची नहीं थी। अगर कहि में फिसल गया और जमीन पर जा गिरा तो मेरा तो कचूमर निकल जायेगा। उसके हाथ पाव कापने लगे। हे प्रभु राम मेरा जीवन अब तेरे ही हाथ में है। तू ही मुझे बचा सकता है। अगर में सही सलामत जमीन पर पहुंच गया तो पुरे एक हजार एक ब्राह्मण को भोजन करवाऊंगा।
उसने अपनी आंखे बंद कर ली और राम, राम करते करते हुए धीरे धीरे निचे उतरने लगा। जब उसे लगा की आदि उतराई कर ली तो बोला – डर के मारे में कुछ ज्यादा तो नि बोल गया। मेरे खयाल से 501 भ्रमणों को ही भोजन करना सही रहेगा। करोड़ीमल जब और निचे उतर आया तो बोला – वैसे तो 201 भ्रामणो को भोजन करना भी कोई कम नहीं है, यही ठीक रहेगा। अपने आप को संतुस्ट करते हुए वो लगातार अपनी बात बदलता जा रहा था। जैसे ही वो थोड़ा और निचे उतरा तो बोला – 201 भ्रामणो को भोजन की जगह क्या 101 भ्रामणो को भोजन से काम नहीं चल सकता, में 101 भ्रामणो को ही भोजन करवाऊंगा।
और जैसे ही उसके कदम जमीन पर पड़े उसने प्रभु राम को याद किया और बोला – हे प्रभु आपको क्या फर्क पड़ता है। में एक हजार एक ब्रामण को भोजन करवाऊ या सिर्फ एक को। अपने आप को समझाइस देते हुए वो घर की और चल पड़ा। चलो अच्छा हुआ मेने एक ही भ्रामण को भोजन करने के लिए प्रभु से कह दिया है। वरना बहुत खर्चा हो जाता। आखिर वे घर पंहुचा, अगले दिन उसने एक भ्रामण की खोज शुरू कर दी जो कम खाता हो। आखिर उसने चंदूलाल को न्योता भेज दिया क्योकि चंदूलाल की खुराख क़म जो थी। अगले दिन जब वह काम पर जाने लगा उसने अपनी पत्नी लता से कहा – सुनती हो आज मेने चंदूलाल भ्रमण को खाने का न्योता दिया है उसे पूरी तरह संतुस्ट करके भेजना। लता बोली – ठीक है, में सब संभाल लुंगी। तुम निश्चिन्त होकर काम पर जाओ।
चंदूलाल करोड़ीमल के घर के बाहर खड़ा होकर सब देख रहा था। जैसे ही करोड़ीमल उसके घर से निकलना चंदूलाल उसके घर आ धमका और लता से बोला – मेँ यही पास से गुजर रहा था, क्योकि मुझे आज यहाँ भोजन पान के लिए आना है। मेने सोचा क्यों न पसंद की चीजे आपको बताता जाऊ। उसने लता को एक लम्बी सी लिस्ट पकड़ा दी जिसमे उसने अपनी पसंद की सभी चीजों का उल्लेख किया हुआ था। लता बोली – ठीक है पंडित जी आप समय पर आ जाना सारा समान में मंगा कर रखूंगी।
चंदूलाल धन्यवाद कहकर वह से चल दिया और कुछ देर बाद दुपहर के भोजन के लिए चंदूलाल आ पंहुचा। उसके लिखे अनुसार सारा समान पहले से तयार रखा था। लता ने आदर पूर्वक चंदूलाल को बैठाया, बैठ कर चंदूलाल ने अपने साथ लाया हुआ केले का पत्ता वह बिछा दिया और उसने भगवान को भोग के नाम से सभी वस्तुओ का एक एक पीस उस पत्ते पर रख दिया और बोला – बेटी, भगवान का भोग तब तक पूरा नहीं होता जब तक एक सोने का सिक्का उन्हें बैठ न किया जाए। लता ने एक सोने का सिक्का उसे दे दिया क्योकि ये सब प्रयोजन उसके पति की रझा के लिए जो हो रहा था।
चंदू मन ही मन मंत्रो का उच्चारण करने लगा, कर्मकांड पूरा करने के बाद उसने चदर जमीन पर बिछाई और सारा सामान और सोने का सिक्का उसमे बाद दिया। और फिर वह खाना खाने लगा और कुछ देर बाद बोला – बेटी, तुम बहुत अच्छी हो। तुमने मेरी बहुत अच्छे ढंग से आओभगत की है। परन्तु भ्रमण की सेवा तब तक सम्पूर्ण नहीं गिनी जाती जब तक उसे एक सोने का सिक्का दक्छिणा में न दिया जाए। लता ने एक और सोने का सिक्का चंदू को भेट कर दिया। चंदूलाल लता से दो सोने के सिक्के हथिया चूका था। और उसे जल्दी ही यहाँ से निकल जाना चाहिए था, सो वह चुप चाप वह से खिसक लिया।
रास्ते में चंदूलाल ने सोचा की उसने करोड़ीमल की भोली भाली पत्नी लता को ठगा है। इसलिए जल्दी ही करोड़ीमल उसके यहाँ आ धमकेगा। चंदूलाल ने एक योजना बनाई और अपनी पत्नी के कानो में फुसफुसाने लगा। करोड़ीमल को जैसे ही पता लगा की चंदू क्या कारनामे करके गया है। उसको बहुत घुस्सा आया और वह चंदूलाल की घर की और चल दिया। पर जब करोड़ीमल वह पंहुचा तो उसने देखा की चंदूलाल की पत्नी घर के बहर बैठ कर जोर जोर से रो रही थी। हाय…. हाय…. हाय, हाय भगवान, क्या हो गया इनको। वो एक धम करोड़ीमल की तरफ लपकी और उसे गर्दन से पकड़ लिया और बोली – ओ जालिम कल तूने ही मेरे पति को न्योता दिया था न।
तूने उसे खाना खिलाया या जहर दे दिया, जब से वह वापिस आया है न बोल रहा है न हिल रह है। बेहोश पड़ा हुआ है। हैं भगवन अब में क्या करू, हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं है की डॉक्टर के पास जा सके। करोड़ीमल बहुत बुरी तरह डर गया। उसकी सिटी पीटी गुल हो गई। वो तो लड़ने आया था पर यहाँ तो दूसरी मुसीबत उसके सामने खड़ी थी। वह बोला – मुझे माफ़ कर दो, रोउ नही… चंदू को कुछ नहीं होगा।
अपने बेटे को मेरे यहाँ भेज दो, में चंदू के इलाज के लिए 10 सोने के सिक्के और दे देता हु। चंदूलाल की पत्नी स्वयं जाकर करोड़ीमल से 10 सोने के सिक्के ले आई। डरा हुआ करोड़ीमल प्रभु राम से प्राथना कर रहा था – हे प्रभु आप अगर चंदू को स्वास्थ्य कर दे और मुझे बचा ले। तो इस बार में जरूर एक हजार एक भ्रमण को भोजन कराऊंगा।
शिक्षा –
अनुचित बचत भी नुकसान देती है।
घमंड की भूख – Moral Stories In Hindi Short
एक बार निमपुर नाम के एक गांव में रमेश अपनी बेटी के साथ रहता था। वह बहुत गरीब था। वह मोची का काम करके जैसे तैसे गुजारा कर रहा था। एक दिन बहुत बारिश हो रही थी। रास्ते में पैर फिसलने के कारण वह गिर गया और उसका एक पैर टूट गया। घर आकर – बेटी मीना कहा हो तुम मेरी मदद करो। मीना अपने पिता की आवाज सुन भागकर आती है। और उन्हें देखकर रोने लगती हैं। और कहती है पिताजी आपको इतनी चोट कैसे लग गई। रमेश रास्ते में हुई सारी बात बताता है। उसे सुनकर मीना सोचती हैं। अब घर कैसे चलेगा। घर में बस थोड़ा सा ही समान है। और इतनी बारिश हो रही हैं। कोई काम ढूंढने भी नहीं जा सकती।
रमेश के घर से थोड़ी दूरी पर गांव के मुखिए रामलाल का घर था। वह बहुत अमीर आदमी था। उसका एक बेटा भी था। जिसका नाम गोपाल था। गोपाल बहुत घमंडी आदमी था। कुछ दिन पहले ही मीना ने अपने पिताजी को रामलाल से बात करते हुए सुना था। की उन्हें कोई काम करने वाली की जरूरत है। मीना रामलाल के यहां जाकर काका तुम्हारे घर पर काम वाली की जरूरत थी न हा थी पर तू ये क्यों पूछ रही हैं। काका मुझे ये काम की बहुत जरूरत है। मेरे पिताजी का एक पैर टूट गया है। और अब वो काम पर भी नहीं जा सकते हैं। मुझे वो कामवाली का काम दे दो। जितना पैसा आपको ठीक लगे उतना दे देना।
रामलाल इस मौके का फायदा उठाना चाहता था। और सोचता है – अरे ये तो अच्छा मौका है। कम पैसों में कामवाली मिल गई। अच्छा ठीक है कल से आ जाना। मीना सुबह उठती हैं और पहले घर का सारा काम करती ओर फिर अपने पिताजी को दवाई देती। उसके बाद रामलाल के घर जाती और सारा काम करती । काका सारा काम हो गया। अब मैं घर जाऊ। रामलाल – ठीक है कल जल्दी आ जाना कल गोपाल के कुछ दोस्त आने वाले हैं। तो उनके लिए खाना बना देना। सिर हिलाते हुए मिना – ठीक है काका। मीना घर जाती हैं तो देखती है। घर में कुछ बचा नहीं है पकाने को और सोचती हैं। क्या बनाऊं, पिताजी को क्या दू, मुझे भी तो बहुत भूख लगी है। और कुछ खाने को भी नहीं है।
तभी उसकी नज़र रोटी के डिब्बे पर पड़ती हैं। उसमे दो रोटियां होती हैं। मीना पिताजी को वो दो रोटियां और नमक दे देती हैं। फिर खुद पानी पीकर पेट भर लेती हैं। रोटी देखकर बेटी मीना तूने कुछ खाया के नी हा पिताजी मेने काका के घर पे खा लिया था। ऐसा कहकर मीना भूख से रोती हुई सो गई। सुबह उठकर रोज की तरह घर का काम किया और जल्दी से रामलाल के घर गई। और अलग अलग प्रकार के पकवान बनाए । तभी वह गोपाल आता है। और कहता है अरे ओ मीना खाना बन गया क्या। मिना – जी खाना बन गया।
इतने में गोपाल के दोस्त आ जाते है। और गोपाल उनके साथ खूब मस्ती करता है। और थोड़ी देर बाद सब को भूख लगती हैं। तो गोपाल मीना को आवाज लगाता है -आरी मीना खाना लगा दो सबके लिए। मिना – जी अभी लगाती हूं । सबके लिए ऐसा कहकर मीना तुरंत खाना लगाती हैं। गोपाल और उसके दोस्त खाना खा लेते हैं। उसके बाद गोपाल मीना को आवाज लगाता है। ये सब लेजा यह से जो बचा है उसे कुत्ते को दे देना। साहब एक बात कहूं – आप सब ने कितना सारा खाना बर्बाद कर दिया है। हमे जितनी भूख हो उतना ही खाना प्लेट में लेना चाहिए। खाना बहुत कीमती होता है। हमे इसे ऐसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।
यहां सुनकर गोपाल को बहुत गुस्सा आता और वो बोलता है – ये सब मेरा है। कितना खाना है और कितना छोड़ना है सब मेरी मर्जी है। तुझे तो मैं सबक सीखाता हूं पिताजी को आने दे। मिना – काका ये बचा हुआ खाना मे ले लूं। वैसे भी इसे कल कूड़े में फेकना है। ठीक है। कुछ दिन बाद मीना रामलाल के यहां से अपनी तनख्वाह मगती हैं। वह खड़ा गोपाल कहता है – कोन सी तनख्वाह तुम रोज यहां से इतना सारा खाना किसे बोलकर ले जाती हो, तो पैसे के साहब वो खाना। मिना – तो वैसे भी कूड़े में फेंक देते आप, उससे किसी की भूख मिटती है तो भगवान आपका भला करेगा। गोपाल – पिताजी देखो कैसे बहस कर रही हैं। जिस दिन मेरे दोस्त आए थे उस दिन भी ये ऐसे ही बहस कर रही थी। पिताजी न जाने खाने के साथ क्या क्या ले जाती होगी।
ये सब सुनकर रामलाल मीना को बिना तनख्वाह दिए काम से निकाल देता है और मीना रोते हुए वह से चली जाती हैं। गोपाल – बड़ी आई थी मुझे समझाने अब पता चलेगा जब भूखा सोना पड़ेगा। मीना सड़क के किनारे बैठ कर रोने लगती हैं। तभी उसकी आध्यापिका वह से गुजर रही होती है। उसे ऐसी हालत में देखकर अध्यापिका मीना से बेटी मीना ये तुमने क्या हाल बना रखा है। और तुम स्कूल क्यों नहीं आ रही हो। मीना रोते हुए सारी बात अध्यापिका को बताती हैं। मीना पढ़ने में बहुत अच्छी थी। इसलिए अध्यापिका उससे कहती है। तुम मेरी साथ स्कूल चलो। तुम मेरे घर में काम कर लेना। और मै तुम्हारा एडमिशन सरकारी स्कूल में करवा दूंगी। वह तुम मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर लेना ।
ये सुनकर मीना बहुत खुश हो जाती हैं। क्यों की अब वो अपनी शिक्षा के साथ साथ अपनी भूख को भी काम कर के शांत कर सकती हैं। इधर रामलाल अपने काम में बेईमानी करते हुए पकड़ा जाता हैं। उसे पुलिस पकड़ कर ले जाती हैं। पुलिस उसकी सारी जमीन और घर अपने कब्जे में कर लेती हैं। अब गोपाल बिल्कुल अकेला हो जाता हैं। उसके पास कुछ खाने को नहीं होता उसे बहुत भूख लगी होती हैं। वह पड़ोसी के पास जाकर मुझे बहुत भूख लगी है कुछ खाने को हो तो दे दे। कोई उसे खाने को नहीं देता। और उसे भगा देते है। वही से गुजर रही मीना ये सब देख रही होती हैं। और गोपाल को अपने साथ ले जाती हैं। और उसके घर रूखा सूखा होता है। वो गोपाल को खाने को देती हैं। और वो गोपाल जल्दी जल्दी सब खा लेता है।
गोपाल – मेने तुम्हारे साथ कितना गलत किया। फिर भी तुम मुझे अपने साथ अपने घर लाई। और खाना भी खिलाया। मुझे माफ कर दो मीना मेने तुम्हे माफ किया। मिना – मेने तुम्हे खाना इसलिए खिलाया क्यों की मे जानती हूं की भूख क्या होती हैं। अमीर हो या गरीब सबकी भूख एक जैसी होती हैं। ये सुनकर गोपाल दुबारा माफी मगता हैं। और उस दिन के बाद से गोपाल मीना को अपनी बहन बना लेता है। और वो खुशी खुशी रहने लगते है।
शिक्षा –
भोजन का कभी अनादर नहीं करना चाहिए।
दो पहलवान – Moral Stories In Hindi For Adult
कई साल पहले, उस जमाने में न गाड़ी थी न मशीनें। लोग अपनी समझदारी से सेहत और ताकत पर भरोसा करते थे। उस समय ज्वालापुर नाम का एक गांव था। वह कई सारे पहलवान रहा करते थे। और कुश्ती जीतकर अपनी सेहत और समझदारी का हर साल कुशी महोत्सव मे प्रदर्शन किया करते। वैसे तो ज्वालापुर गांव में कई पहलवान थे लेकिन दो बड़े हटे कट्टे पहलवान हार साल कुश्ती प्रतियोगिता में अव्वल दर्जे पर नजर आते। हर साल जीतू और मंगलू में पहलवानी का युद्ध होता और हर साल मंगलू जीत जाता।
जीतू उससे एक बार भी जीत न सका और मंगलू अपनी ताकत का पूरा प्रयोग करके हर बार जीतू को हरा देता और जीतू हमेशा निराश होकर घर चला जाता। कुसुम – आप निराश न हो। आप और कड़ा परिश्रम कीजिए। आप जरूर सफल होंगे। भगवान पर भरोसा रखिए। जीतू – हाय, कैसे मंगलू ऐसा कोन सा परिश्रम करता है। जो मैं नहीं कर पाता वो हर बार मुझे पछाड़ देता है। जरूर मुझ में ही कुछ कमी है।
जीतू को परेशान देख कर कुसुम को उस पर बहुत दया आती हैं और वो जीतू के पहलवान उस्ताद जी के पास जाकर सारी बाते बताती हैं। तब उस्ताद जी कहते हैं – मे जानता हूं कुसुम बेटे जीतू पूरी मेहनत करता है। लेकिन हर बार मंगलू अपने बल से जीत को मात दे देता है। बल्कि दोनो मैं शातिर जीतू है, पर हमने जीतू को कई बार समझाया कि बल का प्रयोग न करके मंगलू को अपनी समझदारी से हराए। लेकिन जीतू हमारी एक न सुनता। ठीक कहते हैं गुरुजी आप अब ये है ही इतने जिद्दी किसी की नही सुनते और परिणाम बुरा ही होता है। अरे यही सारी बाते हम जीतू को कई बार बता चुके हैं। लेकिन जीतू अपनी जिद की वजह से हार जाता है।
कुसुम ने उस्ताद जी की बाते सुनकर ठान ली की जीतू के जिद्दी होने का कुछ तो हल निकालना पड़ेगा। कुसुम घर जाकर सोचने लगती हैं कि ऐसा क्या करे जिससे जीतू खुश हो जाए। उस दिन कुसुम अच्छा से अच्छा पकवान खिलाकर जीतू का मन बहलाकर उससे कहती हैं। अरे श्रीमती जी आप ऐसे मसाले दार पकवान बनाकर खिलाएगी तो मैं कैसे तंदुरुस्त रह पाऊंगा। मुझे जाकर ज्यादा व्यायाम करना पड़ेगा। और युद्ध में उस मंगलू को हराना होगा।
हार जीत तो खेल का हिस्सा है। आप बस अपने मन में सायं और धैर्य रखिए। और खुद पर भरोसा रखिए। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। कैसे ठीक होगा कुसुम ये मंगलू का बच्चा मुझे हमेशा ही हरा देता है। जब हम छोटे थे तब भी मैं पढ़ाई में अव्वल नंबर लाया करता था। और ये मंगलू खेल खुद मे आगे रह कर मुझसे आगे निकल जाता था। मंगलू को आपकी कमजोरी पता है।
उसे ये पता है कि आप हमेशा चलाकी से काम लेते हैं। इसलिए मंगलू हर बार आपको उखसा कर कुश्ती में हर बार जीत जाता है। कुसुम की बात सुनकर जीतू के मन में विचार आता है । जीतू मन ही मन में सोचता है। जैसे खेल कूद मेरी कमजोरी है वैसी ही मंगलू की कमजोरी है चलाकी वो फुर्तीला तो है पर अपनी अक्ल का इस्तेमाल कम करता है। और जीतू इसका फायदा उठाने का सोचता है। और उस्ताद के पास चला जाता है। प्रणाम उस्ताद जी अरे बेटा जीतू यह कैसे आना हुआ। मे आप से एक विनती लेकर आ रहा हूं। उम्मीद है मुझे आप मेरी बात सुनेंगे अरे क्यों नहीं जीतू बेटे अगर तुम्हारी बाते अच्छी और काम पूर्वक होगी तो जरूर सुनुगा।
जीतू उस्ताद जी को कुश्ती मुकाबले के साथ साथ दिमाग के मुकाबले करवाने की सलाह देता है। हर साल कुश्ती मुकाबले में सिर्फ कुश्ती देखकर बोर हो जाते हैं। क्यों न हम कुश्ती के साथ साथ एक और दिमागी मुकाबला रखे। दर्शको को कुछ नया देखने को मिलेगा और मुकाबले का नाम और ऊंचा हो जाएगा। तुम्हारा ख्याल तो अच्छा है जीतू बेटे, लेकिन पर इस बात के लिए क्या मंगलू तैयार होगा। हूं, मंगलू को में समझा दूंगा।
उस्ताद जी से दिमागी मुक़ाबले की बात करके जीतू मंगलू के पास आखड़े में पहुंच जाता हैं। क्या हाल है मंगलू भाई कैसे हो, हारने वाले जीतू हमारे यहां आखाड़े में अब और कहा हार कर मुंह काला कर लिया। हमसे मदद मांगने आना पड़ा। हू, जीतू मंगलू से उस दिमाग वाले खेल की बात करता है और फिर उसे मनाने की कोशिश करता है। मंगलू खेल की बाते सुनकर समझ गया था कि दाल में जरूर कुछ काला है। चलो तुम्हारी बात भी ठीक है। शायद तुम मुझसे इस गेम में जीत जाओ। हूं हा हा,,,, ठीक कहते हो मंगलू में तुमसे कभी जीता नहीं पर लेकिन तुम्हें अपनी ताकत पर ज्यादा ही घमंड है। तुम्हें ऐसा नहीं लगता। बल हैं तभी तो घमंड है। इतना सुनने के बाद जीतू वह से चला जाता हैं। और मुक़ाबले के दिनों का इंतजार करता है।
हमेशा की तरह कुश्ती मुकाबले में जीतू फिर हार जाता हैं। और निराश होकर मन ही मन सोचने लगता है। हूं, बस दिमाग वाला मुकाबला हों जानें दो इस मंगलू के बच्चे को में मजा चकाऊंगा। और तभी जीतू के पास मंगलू आकर बोला अरे तुम्हारा नाम किसने जीतू रख दिया है। अरे तुम्हारा नाम तो हार जीत होना चाहिए था। जीतू नहीं, हा हा,,,, हूं, वो तो मुक़ाबले के बाद पता चला जाएगा। और इसी तरह दूसरा मुकाबला शुरू हो जाता हैं। और जीतू और मंगलू दोनो ही तैयार रहते है। हा, तुम इस मुक़ाबले में तुम दोनों की बुद्धि की दो दो जगह परीक्षा होगी। यहां पर दो चुनौतियां लगी हुई हैं। दोनों मे से जो अव्वल आएगा वहीं जीत जाएगा। और जैसे ही मुक़ाबला शुरू होता है। दोनों आगे भागकर जाते हैं। भागते हुए दोनों नदी के पास आ जाते है।
नदी में नाव देख कर मंगलू नाव चलाने की कोशिश करता है। लेकिन तब ही अचानक से जीतू नदी तेरकर पार कर लेता है। नदी पार करने के बाद रास्ते पर कई सारे भेड़िए उन दोनों का रास्ता रोक देते हैं। तब मंगलू उन भेड़ियों को चिल्ला चिल्ला कर हटाने की कोशिश करता है। अरे हट जा अरे हट जा, हट , तभी जीतू उन भेड़ियों के बीच में से आगे पीछे होकर निकल जाता हैं। और मुक़ाबले में अव्वल आ जाता हैं।
मुकाबला जितने के बाद पूरा गांव जीतू को कंधे पर उठा कर बधाई देता है। और तब मंगलू जीतू से कहता है अरे मैं तो मान गया भाई जीतू तुम्हे अगर बल से बड़ी जीत होती है। इतना कहने के बाद गांव वाले कुश्ती पहलवान मंगलू को भी उठा लेते हैं। और दोनों खूब हंसते हैं। तब उस्ताद जी आकर मंगलू से पूछते है। अरे चलो मंगलू बताओ अक्ल बड़ी के भेस हो, भेस
शिक्षा –
दिमाग का सही ढंग से उपयोग करना चाहिए।
उड़ने वाला हाथी – Motivation Short Moral Stories In Hindi
एक बार की बात है। किसी गांव में एक सुबह एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। उसने एक उड़ते हुए हाथी देखा को धरती पर उतरते देखा ओर वो हैरान हो गया। उसने उड़ने वाला हाथी तो कभी नहीं देखा न सुना था। वो सोचने लगा – हो न हो ये हाथी परमात्मा का ही हो सकता है। ये जरूर स्वर्ग से आया होगा। और कुछ देर बाद अरे ये तो लौटने लगा है। क्यों न मैं भी इसके साथ स्वर्ग की सैर कर आओ। उसने हाथी की पूछ पकड़ ली। हाथी आकाश की ओर उड़ने लगा। और किसान भी हाथी के साथ साथ हवा में लेहरा रहा था। अरे वा कितना सुंदर स्थान है।
यहां से में बहुत कुछ लेकर जा सकता हूं। उसने ढेर सारी बहु मूल्य वस्तुएं उठा ली और अपनी जेब में डाल ली।अरे में वापस धरती पर कैसे लोटू और कुछ देर बाद वा हाथी फिर आ गया है। उसने फिर हाथी की पूछ पकड़ ली और हाथी फिर धरती की ओर उड़ने लगा और उसी खेत में उतर गया।
अगले दिन उस किसान ने गांव वालों को स्वर्ग के बारे में बताया तथा वह से लाई हुई बहुत कीमती वस्तुए दिखाई। तो आए बड़ी हैरानी वाली बात है। मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा है। हा भाई है तो अजीब बात है। उड़ने वाला हाथी भी होता है। अरे भाई वह काम करने पर बड़ा मजा आता है। और जानते हो एक घंटा मेहनत पर वह एक माप भोजन मिल जाता हैं। उनका माप बहुत बड़ा होता है। ओर कितना बड़ा है उनका माप इतना बड़ा उसकी बाते सुनकर सभी लोंगो ने उसके साथ स्वर्ग लोक जाने की इच्छा जाहिर की।
उससे अगले दिन वाहे किसान सब को लेकर वह पहुंचा जहां उसने उड़ने वाले हाथी को देखा था। अरे अब साब शांत हो जाओ जरा सी भी आवाज उस हाथी को विचलित कर सकती है। ओर हो सकता है वो यहां उतरे ही नहीं यार तुमने क्या बताया था कि वह एक घंटा काम करने पर कितना मिलता है। अरे एक माप भोजन ओर कितना बड़ा है उनका माप इतना बड़ा बस अब चुप कर जाओ। देखो अब वो उतर रहा है।
हाथी फिर उस खेत में उतर गया। जब वह जाने को था सभी उसकी पूछ के पीछे एक दुसरे को पकड़ कर तैयार हो गए। ओर जैसे ही हाथी उड़ा वे सब भी उसके साथ आकाश में उड़ने लगे। हम वह ज्यादा काम करेंगे ताकि वह से ढेर सारी भोजन सामग्री और कीमती सामान ला सके। हा हा ठीक है। मे भी यही करूंगा। अरे तुमने क्या बताया था। की एक घंटा काम करने की मजदूरी वह कितनी मिलती है। अरे कितनी बार बताया हे की एक माप भोजन ओर कितना बड़ा है उसका माप ये इतना बड़ा अरे यह तो क्या हुआ जैसे ही उसने हाथ करके बताया। सभी उड़ान करके निचे गिर गए। यहां तो अच्छा हुआ कि वे सभी नदी में गिरे थे। इसीलिए बच गए और हाथी इतने जोर से घबराया की कभी उन खेतो में नहीं आया।
शिक्षा –
दिमाग का सही
हाथी और चींटी – Short Moral Stories For Class 5 in hindi
ये कहानी है एक हाथी और चींटी की एक जंगल में एक हाथी रहता था। वो बहुत ही घमंडी था। वो जंगल के बाकी सभी जानवर को अपने सामने कुछ नहीं समझता था। उन्हें परेशान किया करता था। एक दिन की बात है वो जंगल में घूम रहा था। रास्ते में उसे पेड़ पर एक तोता बैठा दिखाई दिया। अरे औ तोते क्या कर रहे हो। तुम्हें दिखता नहीं कौन आया है। में इस जंगल का सबसे ताकतवर जानवर हूं। चलो झुक कर मुझे सलाम करो। तोता -सलाम मे क्यों करूं।
हाथी – अच्छा नहीं करोगे रुको मैं अभी तुम्हें अपनी ताकत का मजा चकाता हूं। तोते ने हाथी को सलाम नहीं किया तो हाथी ने भी अपनी ताकत दिखाई। और पेड़ ही गिरा दिया ताकि वो इस पेड़ पर नहीं बैठ सके। तोते भी वह से उड़ कर चला गया। उड़ जा उड़ जा अब पता चला मे क्या कर सकता हूं। मेरे सामने तुम सब कुछ भी नहीं हो। तो वो हाथी आगे बढ़ा वो हर रोज नदी के किनारे पानी पीने जाता था। वहीं पास में एक छोटी सी गुफा थी। जहां एक चींटी रहती थी। वो हर रोज खाने का सामान इक्कठा किया करती थीं। और हाथी उसे हर रोज परेशान किया करता था। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।
हाथी नदी किनारे पानी पी रहा था। और उसने चींटी को देखा। ए चींटी कहा जा रही है ये लड्डू लेकर। चींटी – अरे मुझे ये गुफा में रखना है। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है। उससे पहले मुझे बहुत सारा खाना जमा करना है। अच्छा ऐसा कहकर हाथी ने अपनी सुंड में पानी भरा और चींटी के उपर डाल दिया। जिससे लड्डू टूट गया। और वो पूरी तरह भीग गई। चींटी – अबे तुझे बहुत घमंड है न अपनी ताकत पर मे तुझे एक दिन सबक जरूर सिखाऊंगी।
हाथी – जा जा तू मुझे क्या सबक सिखाएगी। छोटी सी चींटी तुझे तो मैं अपने पैरो तले कुचल दूंगा। चल भाग यह से। चींटी हाथी की बात सुनकर गुस्से में वह से चली गई। और मन ही मन हाथी से बदला लेने के बारे मे सोचने लगी। इस हाथी का कुछ तो करना पड़ेगा। नही तो ये हमे ऐसे ही परेशान करता रहेगा। अगले दिन जब चींटी खाना लेने गुफा से बाहर निकली तो उसने देखा कि हाथी वह सो रहा है। तो उसे एक तरकीब सूझी वो जल्दी से वह से हाथी की सुंड में घुस गई। और अंदर जाकर उसे काटने लगी। हाथी को दर्द हुआ। और वो नीद से जाग गया। और चिल्लाने लगा। ओह ये क्या कोन है मेरी सुंड में बाहर निकलो मुझे दर्द हो रहा है।
हाथी के इतना चिल्लाने पर भी चींटी बाहर नहीं आईं। और उसे काटती रहीं। हाथी और जोर से चिल्लाने लगा। कोई बचाओ मुझे बचाओ कोन है। बाहर निकलो हाथी को इस तरह चिल्लाते देख चींटी सुंड से बाहर निकली हाथी चींटी को देखकर हैरान हो गया। वो इतना डर गया था कि वो चींटी से माफी मांगने लगा था। ताकि चींटी उसे दुबारा से परेशान न करें। मे अब कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा। चींटी द्वारा सबक सिखाए जाने पर हाथी वह से भाग गया। और उसके बाद उसने कभी किसी को परेशान नहीं किया। अब पता चला हाथी कोई छोटा और कोई बड़ा नहीं होता। तुम अपनी ताकत पर घमंड मत करो। बल्कि उसका इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए करो।
शिक्षा –
अपनी ताकत पर घमंड मत करो।
बल्कि उसका इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए करो।
ईमानदारी का इनाम – Short Stories For Kids 2023
बहुत समय पहले कि बात है किसी गांव में बाबूलाल नाम का एक पेंटर रहता था। वो बहुत ईमानदार था। किंतु बहुत गरीब होने के कारण वह घर घर जाकर पेंट का काम किया करता था। उसकी आमदनी बहुत कम थी। बहुत मुस्किल से उसका घर चलता था। पूरा दिन मेहनत करने के बाद भी वह दो वक्त की रोटी ही जुटा पाता था। वह हमेशा चहता था कि उसे कोई बड़ा काम मिले। जिससे उसकी आमदनी अच्छी हो।
पर वो छोटे छोटे काम भी बड़ी लगन और ईमानदारी से करता था। एक दिन उसे गांव के जमींदार ने बुलाया और कहा सुनो बाबूलाल मैने तुम्हें यहां बहुत जरूरी काम के लिए बुलाया है। क्या तुम वो काम करोगे। जी हुजूर जरूर करूंगा बताए। क्या काम है। मे चाहता हूं तुम मेरी नाव पेंट करो। और ये काम आज ही हो जाना चाहिए। जी हुजूर ये काम में आज ही कर दूंगा। नाव पेंट का काम पाकर बाबूलाल बहुत खुश था। अरे वो सब तो ठीक है पहले तुम ये तो बताओ इस काम के कितने पैसे लोगे।
वैसे तो इस काम के पंद्राशो लगते है। बाकी आपको जो पसंद हो वो दे देना। हूं ठीक है तुम्हें पंद्रा सो मिल जाएंगे। पर काम अच्छा होना चाहिए। जी हुजूर आप चिंता मत करिए। आपको काम बड़ियां ही मिलेगा। जमीदार उसे अपनी नाव दिखाने नदी किनारे ले जाता है। नाव देखने के बाद बाबूलाल जमींदार से कुछ वक्त मागता हैं। और अपना रंग का सामान लेने चला जाता हैं। समान लेकर जैसे ही बाबूलाल आता है। वो नाव को रंगना शुरू कर देता है। जब बाबूलाल नाव रंग रहा था। तब उसने देखा नाव में तो छेद हैं। अगर इसे ऐसे ही पेंट कर दूंगा तो ये डूब जायेगी। पहले इस छेद को ही भर देता हूं। ऐसा कहकर वो छेद को भर देता है। और नाव को पेंट कर देता है।
फिर वह जमींदार के पास जाता हैं। ओर कहता है हुजूर नाव का काम हो गया। अब आप चलकर देख लीजिए। ठीक है चलो। फिर वे दोनों नदी किनारे पहुंच जाते हैं। नाव को देखकर जमींदार बोलता है कि अरे वा बाबूलाल तुमने तो बहुत अच्छा काम किया है। ऐसा करो तुम कल सुबह आकर अपना मेहनत का हरजाना ले जाना। ओर फिर वे दोनों अपने अपने घर चले जाते है। जमींदार के परिवार वाले उसी नाव में अगले दिन नदी के उस पार घूमने के लिए जाते हैं।
शाम को जमीनदार का नौकर रामू जो उसकी नाव की देख रेख भी करता था। छुट्टी से वापस आता है। और परिवार को घर पर न देखकर जमींदार से परिवार वालों के बारे मे पूछता है। जमींदार उसे पूरी बात बता देता है। जमींदार की बात सुनकर रामू चिंता में पड़ जाता हैं। उसे चिंतित देखकर जमींदार पूछता है क्या हुआ रामू ये बात सुनकर तुम चिंतित क्यों हो गए।
सरकार लेकिन उस नाव में तो छेद था। रामू की बात सुनकर जमींदार भी चिंतित हो जाता हैं। तभी उसके परिवार वाले पूरा दिन मौज मस्ती करके वापस आ जाते है। उन्हें सकुशल देखकर जमींदार चैन की सांस लेता है। फिर अगले दिन जमींदार बाबूलाल को बुलवाता हैं और कहता है। ये लो बाबूलाल तुम्हारा मेहताना तुमने बहुत बड़ियां काम किया है। में बहुत खुश हूं। बाबूलाल पैसे लेकर गिनता है तो हैरान हो जाता हैं। क्योंकि वो पैसे ज्यादा थे। वह जमींदार से कहता है। हुजूर आपने मुझे गलती से ज्यादा पैसे दे दिए। नहीं बाबूलाल ये मैने तुम्हें गलती से नहीं दिए। ये तो तुम्हारी मेहनत का ही पैसा हैं। लेकिन हुजूर अपने बीच तो पंद्रा सो की बात हुई थी। ये तो छे हजार है। तो ये मेरी मेहनत के पैसा केसे हुआ।
क्योंकि तुमने एक बहुत बड़ा काम किया है। केसा काम हुजूर तुमने इस नाव के छेद को भर दिया। जिसके बारे मे मुझे पता भी नहीं था। अगर तुम चाहते तो उसे ऐसे ही छोड़ सकते थे। फिर उसके लिए अधिक पैसे भी मांग सकते थे। पर तुमने ऐसा बिलकुल भी नहीं किया। जिसकी वजह से मेरे परिवार वाले सुरशित मौज मस्ती कर सके। अगर तुम उस छेद को नहीं भरते तो मेरे परिवार वाले डूब भी सकते थे। आज तुम्हारी वजह से वो सुरक्षित हैं। इसलिए ये पैसे तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी के है। पर हुजूर फिर भी इस छेद को भरने के इतने पैसे नहीं होते। बस बाबूलाल बस अब तुम कुछ मत कहो। ये पैसे तुम्हारे ही है। तुम इसे रख लो । जमींदार की बात सुनकर और पैसे लेकर बाबूलाल बहुत खुश हुआ। और कहने लगा बहुत बहुत धन्यवाद हुजूर और वो वह से चला गया।
शिक्षा –
हमे अपना काम हमेशा पूरी ईमानदारी से करना चाहिए।
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- प्रथम कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा कौन सी है
आज हमने क्या सीखा?
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